रियाद : एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, सऊदी अरब ने सयुक्त राज्य अमेरिका के साथ 50 साल पुराना पेट्रोडॉलर समझोते को समाप्त करने का फैसला किया है. 8 जून 1974 को हस्ताक्षरित यह समझौता 9 जून 2024 को समाप्त हो गया और अब सऊदी ने इसे नवीनीकृत नही करने का निर्णय लिया है.

पेट्रोडॉलर प्रणाली का महत्व

“पेट्रोडॉलर” शब्द वैश्विक कच्चे तेल लेनदेन के लिए मुद्रा के रूप में अमेरिका डॉलर के उपयोग कप संदर्भित करता है. इस समझौते के अनुसार, अगर दुनिया का कोई भी देश सऊदी अरब से कच्चा तेल खरीदना चाहता है तो उसे डॉलर में भुगतान करना होगा. अब विभिन्न देशो ने अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता से बचने के लिए स्थानीय मुद्रा में व्यापार करना शुरू कर दिया है. उदहारण के लिए, भारत पहले से ही कुछ देशो के साथ रूपए में व्यापार कर रहा है, जबकि चीन युआन के माध्यम से लेनदेन कर रहा है. सऊदी अरब द्वारा पेट्रोडॉलर समझौते को नवीनीकृत नही करने से डॉलर की कीमत और अधिक कमजोर हो सकती है.

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समझौते का इतिहास

पेट्रोडॉलर प्रणाली की स्थापना अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निवसन, राज्य सचिव हेनरी किसिंजर, और सऊदी शाही परिवार के बेच बातचीत के बाद हुयी थी. 8 जून 1974 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गये थे. यह समझौता सऊदी को सुरक्षा की गारंटी देता है और बदले में सऊदी अरब को तेल व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर का उपयोग करना पड़ता है.

सऊदी अरब ने इस समझौते पर हस्ताक्षर क्यों किए ?

1938 में, एक अमेरिकी कंपनी ने सऊदी अरब से तेल की डीलिंग शुरू की. उस समय सऊदी अरब को यह अनुमान नही था कि उसके पास मौजूद यह बेशकीमती दौलत भविष्य में दुनिया और राज करेगी. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, इटली ने सऊदी अरब पर हमला किया और अमेरका ने सऊदी अरब की मदद की. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, अमेरिका और यूएसएसआर के बीच शीत युद्ध शुरू हो गया और सऊदी अरब ने उचित सैन्य शक्ति के अभाव में अमेरिका के साथ सुरक्षा के लिए यह समझौता किया.

अमेरिका और सऊदी अरब के बीच यह समझौता हुआ कि अमेरिका सऊदी अरब को सभी तेल कुँओं के लिए पूर्ण सुरक्षा प्रदान करेगा और बदले में सऊदी अरब को सभी देशो के साथ तेल का व्यापार अमेरिकी डॉलर में करना होगा. इस समझौते के परिणामस्वरूप कच्चे तेल का कारोबार डॉलर में होने लगा और डॉलर वैश्विक मुद्रा बन गया.

ब्रेटन वुड्स समझौता और डॉलर का उदय

1944 में, 44 देशोने ब्रेटन वुड्स समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत सभी देश व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर का उपयोग करने पर सहमत हुए. इस समझौते का मुख्य उद्देश्य देशो को सोना देना और अमेरिकी डॉलर खरीदना था. इस समय एक औंस (28.35 ग्राम) सोने की कीमत 35 डॉलर तय की गई थी. अमेरिका के पास उस समय दुनिया का 75% सोना था और ब्रेटन वुड्स समझौते के बाद डॉलर दुनिया की मुद्रा बन गया.

अमेरिका का सोने से मालामाल होना

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका में अपनी मुद्रा को सोने से जोड़कर और ब्रेटन वुड्स समझौते के माध्यम से वैश्विक व्यापार में अपनोई स्थिति मजबूत की. परिणामस्वरूप, अमेरिका एक सुगद्ध देश के रूप में उभरा.

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