गाजा पट्टी में बीते 7 अक्टूबर के बाद से लगातार लड़ाई चल रही है. इसने इसरायल और फिलिस्तीन के मुद्दे पर दुनिया का ध्यान खीचा है . फिलिस्तीनी भाग में भारतीय उस समय लड़ाई लड़ चुके है जब इजरायल बना भी नही था और भाग पर तुक्री और ब्रिटेन का नियंतरण था
तेल अवीव : भारत के हजारो सेनिको की कब्रे और स्मारक इजरायल में मोजूद है , ये सेनिक पहले और दुश्रे विश्व के दोरान ब्रिटिश आर्मी का हिस्सा थे और इस इलाके में लादे थे. उस समय इजरायल नाम का कोई देश नही था और ये भाग फिलिस्तीन था. इन सेनिको के स्मारक यहाँ बनाये गये थे , जो मोजुदा समय में इजरायल के नियंतरण वाला भाग में आते है. फिलिस्तीन में लड़ने वाले भारतीय सेनिको के नाम और उनकी कब्रे तलाशने में 2008 से 2012 तक इजरायल में भारत के राजदूत रहे नवतेज सरना में शानदार काम किया है . उनके समय में तेल अवीव मे भारतीय दूतवास ने ‘मेमोरियल ऑफ़ इंडियन सोल्जर इन इजरायल’ नाम से बुकलेट जारी की गयी . इस बुकलेट में दोनों विश्व युध्दो में फिलिस्तीन में लड़ने वाले भारतीय सेनिको के बारे में न सिर्फ बताया गया बल्कि उनके नाम भी छपे गये और कई सेनिको की तस्वीरे भी छपी गयी है .
बुकलेट में कॉमनवेल्थ वॉर गेम्स कमीशन के रिकॉर्ड के हवाले से बताया गया है कि दोनों विश्व युध्दो में भारतीय सेनिक , अफ्रीका , यूरोप , और पश्चिम एशिया हर जगह लड़े थे लकिन पश्चिम एशिया में उनकी उपस्थिति खास रही थी . यहाँ उनकी मौते भी बड़ी संख्या में हुयी थी , ये सेनिक खासतोर पर आविभाजित पंजाब और उत्तर भारत से थे . इन सेनिको के लिए चार स्मारक बनाये गये थे , ये चारो स्मारक इस समय इजरायल में है . इन कब्रों पर आज भी सेनिको के नाम लिखे हुए है .
अल अक्सा मस्जिद पर तैनात रहे भारतीय सेनिक
नवतेज सरना में बीबीसी ने अपनी एक बातचीत में बताया था , अल अक्जा मस्जिद को यहूदी और अरब दोनों पवित्र मानते है . इस मुद्दे पर दोनों समुदायो में तनाव रहा . उस समय ये इलाका ब्रिटिश साम्राज्य के कब्जे में था . भारतीय सेनिको को तटस्थ मानते हुए उन्हें अल अक्सा की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था . तश्विरो में पगड़ी पहने अल अक्सा मस्जिद पर खड़े सेनिको को देखा जा सकता है, उस समय अधिकांस भारतीय पगड़ी पहनते थे .
भारतीय सेनिक प्रथम विश्व युद्ध के दोरान फिलिस्तीन इलाको में महत्वपूर्ण लड़ाईयो का हिस्सा थे . 1918 में हाईफा के युद्ध में भी भारतीय सेनिको ने अहम् भूमिका निभाई थी . इस लड़ाई को ब्रिटिश सेना और ओटोमन साम्राज्य की सेना के बिच निर्णायक मन जाता है . नवतेज सरमन बताते है कि पहले विश्व युद्ध के उलट दुसरे विश्व युद्ध के दोरान फिलिस्तीन में कोई बडा युद्ध नही हुआ था लेकिन पुरे इलाके में भारतीय सेनिको की उपस्थति थी .
फिलिस्तीन गये बड़ी संख्या में भारतीय सेनिक
नवतेज सरना के मुताबिक , 1917 में ब्रिटिश जनरल एलेम्बी ने यरूशलम पर कब्ज़ा किया था , एलेम्बी की सेना में बड़ी तादात में भारतीय सेनिक मौजूद थे . उन्होंने कहा कि इजरायल में चार कब्रिस्तान है , जहा भारतीय सेनिको में ताफ्नाया गया है या उनके नाम के पत्थर लगये गये है . सबसे ज्यादा भारतीय सेनिको को ‘रामल्ला वॉर सिमेट्री ‘ में दफनाया गया है जहा 528 कब्रे और पहला विश्व स्मारक बना हुआ है .
सरना के मुताबिक बताते है कि प्रथम विश्व युद्ध में लड़ने वाले सेनिको के स्मारक कॉमनवेल्थ वॉर गेम्स कमीशन ने बनाये थे . इनमे हईफा का अहम् कब्रिस्तान है . उन्होंने ये भी कहा की ज्यादातर भारतीय सेनिक हिन्दू , मुस्लिस और सिख धर्म से थे . बुकलेट छापने पर सरना ने बताया कि इन स्थानों की पहचान करना , जानकारी जुटाना और तस्वीरे लेकर इस पुस्तिका को छापा गया है .